Ad

Suran ki Kheti

अप्रैल माह में बोई जाने वाली जिमीकंद की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

अप्रैल माह में बोई जाने वाली जिमीकंद की खेती से जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारी

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की आधे से ज्यादा आबादी आज भी खेती-किसानी पर आश्रित है। यही वजह है की यहां बड़े पैमाने पर खेती की जाती है। 

जहां पहले किसान पारंपरिक फसलों को अधिक अहमियत देते थे। वहीं, अब किसान धीरे-धीरे ज्यादा मुनाफा देने वाली फसलों की खेती कर रहे हैं। जिमीकंद इसी प्रकार की फसलों में से एक है।

जिमीकंद को उत्तर भारत के बहुत से राज्यों में ओल भी कहा जाता है। अप्रैल महीने की शुरुआत में किसान इस फसल की खेती कर पांच गुना मुनाफा कमा सकते हैं। 

कृषि वैज्ञानिकों का जिमीकंद को लेकर क्या कहना है 

कृषि वैज्ञानिक प्रमोद कुमार के अनुसार, जिमीकंद की खेती से किसान काफी शानदार कमाई कर सकते हैं। जिमीकंद की खेती शुरू करने का सबसे अच्छा वक्त अप्रैल है। उन्होंने बताया कि ओल की खेती के लिए सिंचाई व्यवस्था बेहतर होनी चाहिए। 

इसके अतिरिक्त इसमें ऑर्गेनिक खाद्य का उपयोग करना चाहिए, जिससे फसल अत्यंत अच्छी होती है। क्योंकि, बरसात का मौसम जुलाई में चालू होता है। इस वजह से किसानों को वक्त रहते सिंचाई व्यवस्था कर लेनी चाहिए। 

उन्होंने बताया कि जिमीकंद की फसल 7 से 8 महीने में पककर तैयार हो जाती है। अप्रैल में बुवाई के पश्चात नवंबर में फसल कटाई के लिए तैयार हो जाती है। उन्होंने बताया कि एक कट्ठे में जिमीकंद की खेती कर किसान 20 से 25 हजार रुपए तक आसानी से कमा सकते हैं। 

जिमीकंद की खेती के लिए उपयुक्त मृदा का चयन महत्वपूर्ण 

प्रमोद कुमार ने बताया कि इसकी खेती के लिए सबसे पहले उपयुक्त मृदा का चयन करना अत्यंत आवश्यक है। किसानों के लिए जिमीकंद की खेती के लिए रेतीली दोमट प्रकार की मृदा की तलाश करनी चाहिए, जिसमें जल निकासी की अच्छी व्यवस्था हो और जिसमें कार्बनिक पदार्थ हों। 

ये भी पढ़ें: जिमीकंद की खेती से जीवन में आनंद ही आनंद

एक बार जब उपयुक्त मिट्टी का चयन हो जाए, तो दो फीट की दूरी पर और 40 मीटर के गड्ढों में जिमीकंद की बुवाई करें। इसके लिए दो केजी के जिमीकंद को चार भागों में काटकर एक एक गड्ढे में मिट्टी से एक इंच नीचे लगा सकते है।

किसान भाई इस बात का रखें विशेष ध्यान

इसमें किसानों को इस बात का खास ध्यान रखना जरूरी है, कि कटे हुए ओल में गढ्ढा हो। ये ओल देसी ओल की तुलना में पांच गुना बड़ा होता है। देसी ओल जहां तीन वर्ष में पककर तैयार होता है। 

वहीं, ये प्रभेद के ओल आठ महीने में तैयार हो जाते हैं। इसकी खेती के लिए एनपीके (नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, और पोटैशियम) का अनुपात 100:60:80 का होना चाहिए। इसके साथ सप्ताह में एक बार पटवन करना जरूरी है, जिसके बाद 20 से 23 दिन में इसके पौधे निकलने लगते हैं।

जिमीकंद कितने समय में तैयार हो जाता है 

उन्होंने कहा कि यदि आप 140 क्विंटल जिमीकंद लगाएंगे तो आठ महीने में ये 500 क्विंटल हो जाएगा। इस प्रकार के जिमीकंद को उगाना काफी आसान है। क्योंकि इसे कीड़े या जानवरों से कोई हानि नहीं पहुंचती है। 

ये भी पढ़ें: सूरन की खेती में लगने वाले रोग और उनसे संरक्षण का तरीका

जिमीकंद का एक 500 ग्राम का तुकड़ा आठ महीने में 2 से 2.5 किलो तक हो जाता है। उन्होंने बताया कि बजार में इसको बड़ी आसानी से 40 रुपये प्रति किलो में बेचा जा सकता है। अब इस हिसाब से किसान इससे काफी अच्छी आय कर सकते हैं।

औषधीय जिमीकंद की खेती कैसे करें (Elephant Yam in Hindi)

औषधीय जिमीकंद की खेती कैसे करें (Elephant Yam in Hindi)

जिमीकंद यानी ओल औषधीय गुणों से भरपूर होता है। इसकी खेती यहां प्राचीन काल से ही होती रही है।अनेक आधुनिक सब्जियों से पूर्व कंद, मूल एवं फलों का विवरण वेद, पुराणों में मिलता है। 

बिहार राज्य में गृह वाटिका से लेकर व्यवसाहिक स्तर पर इसकी खेती की जाती है। इसे हल्के छायादार बागों में भी सहयोगी फसल के रूप में लगाया जा सकता है। इससे बवासीर, पेचिस, दमा, ट्यूमर, उदर पीड़ा, फेंफड़ों की सूजन, रक्त विकार आदि में उपयोगी बताया जाता है।

जिमीकंद की खेती की संपूर्ण जानकारी

किसी भी कंद वाली फसल के लिए उत्तम जल निकासी वाली एवं भुरभुरी मिट्टी अच्छी रहती है। कंद वाली फसलों के लिए खेत की जुताई करने के बाद बार बार पाटा लगाना चाहिए ताकि खेत में ढ़ेल न बनें। 

ये भी पढ़े: आलू की पछेती झुलसा बीमारी एवं उनका प्रबंधन 

हर जगह होने लगी खेती

जिमीकंद की खेती अब बिहार के अलावा समूचे देश में होने लगी है। इसकी फसल करीब 225 दिन में तैयार होती है। इससे 40 से 50 टन कंद प्राप्त होते हैं। 

ये भी पढ़े: इस तरीके से करें चौलाई की उन्नत खेती (cultivation of amaranth), गर्मी के मौसम में होगी मनचाही कमाई

कैसे करें बुवाई

जिमीकंद का बीज आलू की तरह कंद को पूरा लगाकर या काटकर लगाया जाता है। इसके लिए 250 से 300 ग्राम का कंद उपयुक्त होता है। कटिंग वाले कंदों में अंकुरण के लिए कलिका, आंखों का होना आवश्यक है।

बीजोपचार

कंदों की बिजाई करने से पूर्व इनका उपचार जरूर करना चाहिए। इसके लिए 5 ग्राम एमीसान एवं तीन ग्राम स्ट्रेप्टोसाइक्लिन 0.5 ग्राम को प्रति लीटर पानी में घोलकर कंदों को आधा घण्टे तक दवा वाले पानी में डालकर निकालना चाहिए। 

इसके अलावा कार्बन्डाजिम एवं बावस्टीन की दो ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी के हिसाब से घोलकर कंदों को उसमें डुबोकर भी उपचार करना चाहिए। दोनों तरह की क्रियाओं में से केवल एक ही तरह की दवाओं का प्रयोग करेंं। 

बीज दर

250 ग्राम के कंद को 75 सेंटीमीटर की दूरी पर लगाने से 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर, 500 ग्राम के कंद लगाने पर 80 क्विंटल ,250 ग्राम का कंद एक मीटर की दूरी पर लगाने से 25 क्विंटल , 500 ग्राम के कंदों को एक मीटर पर लगाने के लिए 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर बीज की जरूरत होती है। 

ये भी पढ़े: छत पर उगाएं सेहतमंद सब्जियां

कब होती है कंदों की बुवाई

जिमीकंद की बिजाई अप्रैल से जून तक की जाती है। समतल खेत में बुवाई के लिए सड़ी गोबर की खाद डालने के अलावा एनपीके का उपयोग मिट्टी जांच के आधार पर करें। 

जुते खेत में 70 से 90 सेंटीमीटर दूरी पर कुदाल से गड्ढ़ा खोदकर 20 से 30 सेमी गहरी नाली खोदकर उनमें कंदों को रोप देते हैं। नाली में कंदों को ढक दिया जाता है। बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखें कि कंद का कलिका वाला हिस्सा उूपर की तरफ रहे।

कितनी डालें खाद

कंद की अच्छी उपज के लिए सडी गोबर की खाद 15 क्विंटल एवं नत्रजन, फास्फोरस एवं पोटाश 80,60, 80 किलोग्राम के अनुपात में प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करें। फास्फोरस की पूरी मात्रा जमीन में मिला दें। 

बाकी तत्वों को कंदों पर मिट्टी चढ़ाते समय 60 से 80 दिन की फसल होने पर जमीन में डालें। शूक्ष्म पोषक तत्वों का प्रयोग भी जोत में मिलाकर करने से उत्पादन बढ़ता है। 

कंदों के अच्छे अंकुरण के लिए धान के पुआल आदि से कंदों को ढ़क देना चाहिए। इससे जमीन में नमी बनी रहती है और गर्मी का प्रभाव भी नव अंकुर पर नहीं पड़ता। इस प्रक्रिया को अपनाने से खरपतवार भी नहीं उगते।

सिंचाई

कंदों को बरसात से पहले हल्की दो सिंचाई आवश्यक होती हैं। निराई एक माह बार और दो से तीन माह बाद करनी होती है।